जन्मकुंडली में मुख्यतः दो प्रकार के योग बनते हैं। पहला राजयोग और दूसरा दुर्योग। हर कोई चाहता है कि उसकी जन्मकुंडली में राजयोग बने लेकिन व्यावहारिक तौर पर ऐसा होना संभव नहीं है। सृष्टि का यही नियम है कि जहाँ सुख है वहाँ कभी ना कभी दुख भी होगा। जहाँ जीवन है वहाँ मृत्यु भी निश्चित है। इस आधार पर प्रत्येक जातक को राजयोग व दुर्योग का दोनों का सामना करना पड़ता है।
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आज के लेख में हम जन्मकुंडली में बनने वाले कुछ ऐसे योगों के बारे में बात करने जा रहे हैं जिनसे जातक को आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
धन हानि कराने वाले प्रमुख योग-
वैसे तो ज्योतिष शास्त्र में बहुत सारे ऐसे योग बताए गए हैं जिनके जन्म कुंडली में होने पर जातक को धन हानि निश्चित रूप से होती है। इनमें से कुछ प्रमुख योगों के विषय में हम आज बात करने जा रहे हैं-
- जन्म कुंडली का षष्ट भाव ऋण भाव के नाम से जाना जाता है। अगर जन्म कुंडली में ऋण भाव का स्वामी ग्रह , जन्म कुंडली के धन भाव के स्वामी ग्रह के साथ युति बना लेता है, तो यह धन नाश योग माना जाता है। धन और ऋण का योग होने से जातक को धन हानि की प्रबल संभावना होती है।
- जन्म कुंडली के ऋण भाव के स्वामी ग्रह और जन्म कुंडली के लग्न भाव के स्वामी ग्रह के मध्य बनने वाली युति से भी जातक को धन हानि होती है। जन्म कुंडली का षष्ठ भाव रोग व ऋण का होता है। इस भाव से युति होने पर जातक का धन रोग या अन्य व्यर्थ के कार्यों में व्यय होता है।
- जन्म कुंडली के व्यय भाव के स्वामी और लग्न भाव के स्वामी ग्रह की युति भी जातक के लिए धन नाश का कारण बनती है। इसमें कोई संशय नहीं है कि व्यय भाव स्पष्ट तौर पर जातक का अतिरिक्त व्यय कराएगा।
- जन्म कुंडली का धन भाव और जन्म कुंडली का व्यय भाव वैसे तो एक दूसरे के पूरक भाव कहे जाते हैं क्योंकि जहाँ धन आता है वही से धन खर्च भी होता है। लेकिन अगर जन्म कुंडली के यह दोनों भावों का योग हो जाए तो जातक की आर्थिक स्थिति कमजोर करने वाला सिद्ध होता है।
- जन्म कुंडली में व्यय भाव के स्वामी ग्रह और पंचम भाव के स्वामी ग्रह के बीच योग होने पर जातक को धन हानि का सामना करना पड़ता है। इसमें जातक की संतान द्वारा धन व्यय करना भी शामिल है।
- ज्योतिष के छठे सूत्र के अनुसार अगर जन्म कुंडली में पंचम भाव पति व षष्ठ भाव पति के मध्य योग बन जाए तो यह योग भी जातक के लिए धन हानि का कारण बनता है। इसमें भी रोग में धन व्यय या संतान द्वारा धन व्यय की प्रबल संभावना होती है।
- जन्म कुंडली के सुख भाव यानि चतुर्थ भाव का संबंध जन्म कुंडली के षष्ठ भाव से हो जाए तो ऐसी स्थिति में भी जातक को धन हानि का सामना करना पड़ेगा।
- जन्म कुंडली के व्यय भाव का संबंध अगर जन्म कुंडली के सुख भाव से बन जाए तो यह योग भी जातक को आर्थिक नुकसान पहुंचाता है।
- जन्म कुंडली में अगर ऋण भाव के स्वामी व व्यय भाव के स्वामी ग्रह युति बनाते हैं तो ज्योतिष शास्त्र में यह स्थिति भी धन हानि कराने वाली मानी गई है।
निष्कर्ष-
इस प्रकार से हमने ज्योतिष शास्त्र में बताए गए धन नाश करने वाले प्रमुख योगों के विषय में विस्तार से जाना। अगर इन योगों पर शुभ ग्रहों की दृष्टि पड़ जाए तो इनके दुष्प्रभाव में निश्चित रूप से कमी होगी।
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