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वास्तु शास्त्र में चारों दिशाओं का क्या महत्व है ?

What is the importance of the four directions in Vastu Shastra?

वास्तु और दिशा एक दूसरे के पूरक कहे जा सकते हैं । वास्तु शास्त्र में सबसे अधिक महत्वपूर्ण दिशा को ही माना गया है । जब भी हम यह सुनते हैं कि इस जगह का वास्तु ठीक नहीं है या इस घर में वास्तु दोष है तो अधिकांश मामलों में वास्तु दोष का यही अर्थ होता है कि हमारे घर का द्वार , खिड़कियां , पूजा स्थल , रसोई घर , स्नान घर , विश्राम घर या अन्य कोई उपयोग की वस्तु गलत दिशा में बनाई या रखी गई है । वास्तु दोष से बचने के लिए हम सबसे पहले दिशाओं को बदलते हैं और दिशाएं ठीक करने से काफी हद तक वास्तु दोष से मुक्ति मिल जाती है । आज हम वास्तु शास्त्र के अनुसार चारों दिशाओं के महत्व को समझने वाले हैं । वास्तु के अनुसार कौन सी दिशा व्यक्ति को किस रूप में लाभ प्रदान करती है , आज के लेख के माध्यम से इसका विश्लेषण करेंगे । 

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प्रमुख दिशाओं के नाम -

शास्त्रों में कुल 10 दिशाएं बताई गई हैं लेकिन प्राकृतिक रूप से 4 दिशाएं ही प्रमुख मानी जाती हैं । 

  1. पूर्व दिशा 
  1. पश्चिम दिशा 
  1. उत्तर दिशा 
  1. दक्षिण दिशा 

अब हम वास्तु शास्त्र में इन चारों दिशाओं के महत्व को क्रम से समझेंगे । 

वास्तु शास्त्र में पूर्व दिशा का महत्व -

वास्तु शास्त्र में पूर्व दिशा को सबसे अधिक शुभ माना गया है । ऐसा माना जाता है कि हमारे घर के दरवाजे व खिड़कियां पूर्व दिशा की ओर होने से बहुत शुभ फल की प्राप्ति होती है और घर में वास्तु दोष की स्थिति उत्पन्न नहीं होती है । इसके पीछे प्रमुख कारण है – सूर्य का पूर्व दिशा से उदय होना । सूर्य पूर्व दिशा से निकलता है और अगर आपके घर के खिड़की दरवाजे पूर्व दिशा की ओर हैं तो सुबह ही आपके घर में सूर्य अपनी किरणों के माध्यम से सकारात्मक ऊर्जा का संचार करेगा  जिससे आप मानसिक व शारीरिक रूप से तरोताजा महसूस करेंगे ।

वास्तु शास्त्र में पश्चिम दिशा का महत्व -

वास्तु शास्त्र में पश्चिम दिशा तुलनात्मक रूप से कम शुभ मानी गई है । पश्चिम दिशा के स्वामी वरुण देव हैं । ऐसा माना जाता है कि धन संचयन के लिए यह दिशा बिल्कुल भी शुभ नहीं है । इस दिशा में धन रखने से जातक को अपनी आय से अधिक व्यय का सामना करना पड़ सकता है । इसीलिए वास्तु दोष से बचने के लिए घर या दुकान को पश्चिम दिशा में ना बनाने की सलाह दी जाती है ।

वास्तु शास्त्र में उत्तर दिशा का महत्व -

वास्तु शास्त्र में उत्तर दिशा को शुभ माना जाता है । इस दिशा के स्वामी धन के देवता कुबेर हैं यानि इस बात में कोई संशय नहीं है कि धन कमाने व धन बचाने के लिए उत्तर दिशा सर्वश्रेष्ठ है । उत्तर दिशा का महत्व ध्रुव तारे की वजह से और बढ़ जाता है । आसमान में ध्रुव तारा सदैव उत्तर दिशा में ही रहता है यानि यह दिशा स्थिरता की प्रतीक है । मतलब स्पष्ट है कि स्थिरता वाले सभी कार्यों जैसे चिंतन-ध्यान , पठन पाठन आदि के लिए यह दिशा सर्वाधिक शुभ है ।

वास्तु शास्त्र में दक्षिण दिशा का महत्व -

वास्तु शास्त्र में दक्षिण दिशा को सर्वाधिक अशुभ दिशा माना गया है । घर के खिड़की या दरवाजे भूल से भी दक्षिण दिशा में नहीं रखने चाहिए , इससे घर में नकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है । इसके साथ ही जातक को शारीरिक व मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है । 

निष्कर्ष -

वास्तु शास्त्र में पूर्व व उत्तर दिशा सभी कार्यों के लिए बेहद शुभ मानी गईं हैं  तो वहीं पश्चिम व दक्षिण दिशा तुलनात्मक रूप से कम अशुभ और कई स्थितियों में बेहद अशुभ भी बताई गईं हैं । 

वास्तु शास्त्र में चारों दिशाओं का क्या महत्व है ?
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