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द्वारका नगरी का इतिहास क्या है? - Blog

द्वारका नगरी का इतिहास क्या है?

द्वारका नगरी

द्वारका नगरी, मुरली वाले श्री कृष्ण की नगरी जहाँ पर आने वाला हर तीर्थ यात्री अपने आप को सौभाग्यशाली समझता है, सिर्फ धरती पर नही है बल्कि विशाल और गहरे समुद्र के अन्दर भी है। आज के इस विडियो में हम द्वारका नगरी के इतिहास को टटोलेंगे।

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आप सभी जानते है भव्य विशाल द्वारका नगरी को श्री कृष्ण ने बसाया था। श्री कृष्ण पैदा हुए मथुरा में, पले बड़े गोकुल नगरी में यशोदा मैया की ममता की छाँव में और एक राजा की तरह राज द्वारिका नगरी में किया।

मथुरा नरेश कंस श्री कृष्ण के मामा थे। अपनी बहन देवकी के वासुदेव के विवाह से वो बहुत प्रसन्न था लेकिन जब उसे पता चला कि देवकी के गर्भ से उसका काल पैदा होने वाला है उसने अपनी बहन और बहनोई को कैद में रखा और पैदा होने वाले सभी बच्चो को एक एक करके मारता गया। आठवे  पुत्र के रूप में श्री कृष्ण पैदा हुए और किसी तरह बचते बचाते वासुदेव उन्हें गोकुल लेके आए और यशोदा माता के घर जन्मी बेटी की जगह अपने पुत्र कृष्ण को बदल दिया। फिर वो समय आया जब कृष्णा जी ने अपने मामा का वध किया। कंस के वध से जरासंध बहुत क्रोधित था और उसने प्रतिज्ञा की कि वो यदुवंशियो का विनाश कर देगा। वो कंस के वध का बदला लेने के लिए बार बार मथुरा पर हमला करने लगा। वो निरंतर लोगो पर अत्याचार करता गया। जब ये सब श्री कृष्ण को पता चली तो अपने राज्य की जनता की सुरक्षा के लिए मथुरा छोडकर गुजरात में समुद्र के किनारे द्वारिका जैसा विशाल और आधुनिक नगर बसाया।

द्वारका नगरी जो आज भारत और गुजरात की शान है भारत वासियों के लिए एक पवित्र धाम है। पुरातत्व वैज्ञानिको के अनुसार समुद्र के अन्दर एक और द्वारका नगरी है। 

आप सोच रहे होंगे कि समुद्र के अन्दर,वो कैसे।,बताते हैं।

द्वारका नगरी के सम्बन्ध में प्रचलित कथा

द्वारका नगरी के समुद्र में समाने के पीछे एक नही बल्कि दो प्रचलित कथाए हैं।  

  • पहली कथा 

एक कथानुसार श्री कृष्ण की कर्म भूमि का ये हाल कौरवो की माँ माता गांधारी के श्राप के कारण हुआ और दूसरी कथा के अनुसार द्वारका और यदुवंशियो का विनाश ऋषियों द्वारा दिए गए श्राप के कारण हुआ। दूसरी कथा के बारे में बहुत कम लोगो को पता है। 

चलिए दोनों कथाओं के बारे में बताते है। महाभारत के युद्ध में समस्त कौरव वंश का विनाश हो गया था। जब ये सन्देश संजय ने धृतराष्ट्र के पत्नी और 100 कौरवो की माता गांधारी को दिया और कहा कि सभी पांडव युद्ध में जीत के बाद हस्तिनापुर आ रहे हैं तो गांधारी ने खुद को संभाल लिया, लेकिन जैसे ही उन्हें पता चला की श्री कृष्ण भी उनके साथ आ रहे हैं तो वो अत्यंत क्रोधित हुई। जब वो श्री कृष्ण से मिली तो उन्हें अपने कौरव वंश के विनाश का कारण ठरहाया और उनको श्राप दिया की जिस तरह मेरे वंश का विनाश हुआ उसी तरह तुम्हारे वंश का भी विनाश हो जाएगा। श्री कृष्ण ने हाथ जोडकर उन्हें कहा माता मुझे आपका ये श्राप स्वीकार है और गांधारी को प्रणाम किया और वहां से चले गए।

  • दूसरी कथा

श्री कृष्ण के वंश के यदुवंशी युवा उनके पुत्र साम्ब के साथ बाग़ में भ्रमण कर रहे थे और अपने दोस्तों के साथ हंसी मजाक कर रहे थे। 

कुछ समय बात कण्व ऋषि और महर्षि विश्वामित्र द्वारका में पधारे।  सभी यदुवंशियो ने उनके साथ मजाक करने की सोची। इसी के चलते साम्ब स्त्री का वेश बदलकर अपने साथियों के साथ उनके सामने आए और सभी साथियों ने जब ऋषियों से कहा की मुनिवर ये स्त्री गर्भवती हैं। कृपया बताए इन्हें पुत्र होगा या पुत्री। उनके जवाब में जब ऋषियों ने ध्यान लगाया तो उन्हें पता चला कि वो स्त्री नही बल्कि पुरुष हैं। इस बात से वो इतने क्रोधित हुए कि उन्हें श्राप देते हुए कहा साम्ब के गर्भ से एक मुसल पैदा होगा और उस मसल से तुम सभी क्रूर, दुष्ट लोग आपस में लड़ोगे और खुद अपने समस्त कुल का नाश कर दोगे।

जब कृष्ण जी को इस श्राप के बारे में पता चला तो उन्होंने कहा उनका श्राप जरुर सही साबित होगा क्योकि ये महऋषियों की वाणी है।

ऋषियों के श्राप के चलते अगले दिन साम्ब के गर्भ से मुसल पैदा हुआ। राजा अग्रसेन ने चिंतावश चोरी छिपे उस मुसल को समुद्र में फेक दिया। 

इसके बाद श्री कृष्ण ने नगरवासियों  से कहा कि आज के बाद से कोई भी नगरवासी मदिरा नही बनाएगा और अगर कोई पकड़ा गया उसे सख्त सजा मिलेगी। सभी नगरवासियों ने मदिरा न बनाने का निश्चय किया। ऐसा कृष्ण ने इसलिए कर ताकि नशे में लोग एक दूसरे का अहित न कर दे।

सभी धर्म ग्रंथो के अनुसार इस दिन के बाद से द्वारका में अजीब अजीब बाते होने लगी और श्री कृष्ण समझ गए कि अब ऋषि मुनियों के श्राप अनुसार उनके कुल का विनाश होके रहेगा।

इसके बाद श्री कृष्ण ने अपने परिवार के सभी नवयुवको को तीर्थ पर जाने के लिए कहा।  सभी ने समुद्र किनारे अपना डेरा जमाया। उस वक्त इन सभी में किसी बात पर बहस हो गयी और ये बहस झगडे में बदली और सभी एक दूसरे पर वार करने लगे। ये वो वक्त था जब लगने लगा कि ऋषि मुनियों के श्राप के पूरे होने का समय आ गया है। श्राप के कारण साम्ब ने जिस मुसल को उत्पन्न किया था उसका प्रभाव दिखने का समय आ गया था। उस वक्त जो भी वार करने के लिए बाग़ में लगी एरका घास उखाड़ता उस वक्त हो मुसल में बदल जाती और जो भी उस मुसल से दूसरे पर वार करता वो वही धराशाई हो जाता। इस आपसी झड़प में प्रद्युम्न, श्रीकृष्ण के पुत्र भी नही रहे।

जब कृष्ण जी को ये पता चला तो वो वहां गए। जब उन्होंने अपने वंशजो और पुत्र को मृत देखा तो उन्हें क्रोध आया और उन्होंने एरका घास उखाड़ी और वो घास मुसल में बदल गई। जिन्होंने उनके वंश पर वार किया था उन पर श्री कृष्ण ने एक ही वार किया और उस एक वार से सभी का नाश हो गया।

अब उनके वंश में वो, उनके भाई बलराम और सारथी दारुक ही बचे थे। उस समय कृष्णा ने अपने सारथी को अर्जुन के पास भेजा और ये सन्देश भेजा कि वो द्वारका आ जाए।

फिर उन्होंने अपने भाई बलराम से कहा भाऊ आप यही रुकिए मैं पिता श्री से मिलकर आता हूँ। वो वासुदेव जी से मिलने गए और उन्हें यदुवंशियो के सर्वनाश के बारे में सूचित किया। अपने पिता को ये सूचित करने के बाद उन्होंने उनसे कहा कि अर्जुन यहाँ द्वारका में सभी स्त्रियों और बच्चो को लेने आएगे आप सभी को उनके साथ भेज देना।

जब कृष्णा वापिस आए तो उन्होंने देखा बलराम साधना में थे। जल्दी ही वो शेषनाग में तब्दील हो गये और उन्होंने अपना देह त्याग दिया। इसके बाद कृष्णा जी जंगल में अकेले विचरण करने लगे। उन्हें पता चल गया था कि माता गांधारी के श्राप का समय आ गया है। तब वो एक पेड़ की छाँव में धरती पर लेट गए। उसकी वक्त जरा नाम के शिकारी ने कृष्णा को हिरन समझकर बाण चला दिया और वो तीर कृष्णा जी के पैर के अंगूठे में आकर लगा। जरा ने जब कृष्णा जी को घायल देखा तब उसने उनसे माफ़ी मांगी। कृष्णा जी ने अभय दान दिया और उनको माफ़ करके अपनी देह त्याग दी।

अर्जुन द्वारका पहुंच तो उनको सब पता चला। कृष्णा जी के आदेश का पालन करते हुए अर्जुन सभी को अपने साथ हस्तिनापुर ले जाने लगे।

रास्ते में अर्जुन ने सभी मृत यदुवंशियो का दाह संस्कार भी किया। 

जैसे ही श्री कृष्ण ने देह त्यागी और अर्जुन सभी स्त्रियों और बच्चो को ले जाने के लिए द्वारका से निकले उसी वक्त समुद्र का लेवल बढ़ने लगा और द्वारका देखते ही देखते समुद्र में समा गयी।

क्या द्वारका सच में थी?

पहले कुछ लोग ये मानने को तैयार नही थे कि सही में समुद्र के अन्दर एक और द्वारिका है। लेकिन रिसर्च के दुरंत जब समुद्र के अन्दर इस समय के अवशेष और पिलर मिले तो लोगो को इस बात पर विश्वास होने लगा।

आप जानते हैं जो द्वारका अभी धरती पर है वो द्वारिका की राजधानी की, यही पर श्री कृष्ण राज करते थे और जो द्वारका पानी के अन्दर है वो उनका महल था। इस महल में वो अपने परिवार के साथ रहते थे। जो द्वारका अब है वही पर बैठकर कृष्णा ने राज्य पर शासन किया लेकिन जो द्वारिका पानी में है वहां वो ही महल था जहाँ अर्जुन और दुर्योधन कृष्णा से युद में उनकी तरफ से लड़ने के लिए मनाने आए थे। 

समुद्र में समाई द्वारिका के रहस्य को जानने के लिए 2005 से अभियान शुरू हुआ। उनकी इस अभियान में भारतीय नौसेना ने उनका साथ दिया। ये सर्च अभी तक अधूरी है। इस अभियान में लगे गोताखोरों का कहना है कि समुद्र बहुत गहरा है और कोई भी गोताखोर इस अभियान के लिए तीन घंटे से ज्यादा पानी में नही रह सकता है। जल्द ही पुरातत्व वाले वाटर प्रूफ कैमरा इस्तेमाल करने वाले हैं ताकि उन कैमरा की मदद से वो पूरी जानकारी निकाल पाए। 

पौराणिक धर्म ग्रंथो की माने तो द्वारका बनाने के लिए कृष्णा ने समुद्र से जमीन मांगी थी और समुद्र ने कृष्णा के जाने के बाद वो जमीन वापिस ले ली।

ये रहस्य अभी भी पूरी तरह बाहर आना बाकी है।

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