वक्री ग्रह का ज्योतिष में महत्व

वक्री ग्रह का ज्योतिष में महत्व

प्रत्येक ग्रह की घूर्णन की गति भिन्न हैऔर प्रत्येक ग्रह एक निश्चित अवधि में सूर्य का घूर्णन पूर्ण करता हैऔर इसी प्रकार हर ग्रह अपनी धुरी और अपनी कक्षा में घूम रहा है।

• सूर्य भी अपनी धुरी पर घूमते हैं, क्योंकि सूर्य बाकी ग्रहों के मध्य में है इसीलिए सूर्य कभी वक्री नहीं होते।

• चंद्र भी कभी वक्री नहीं होते।

• 30 डिग्री की एक राशि को शनि ढाई वर्ष में पूरा करते हैं और इसी राशि को चंद्र ढाई दिन में और सूर्य 30 दिन में पूरा करते हैं, अतः शनि 360 डिग्री पूरी करनेमें 30 वर्ष का समय लेते हैं और पृथ्वी इसी दूरी को पूरा करनेमें 365 दिन अर्थात 1 वर्ष का समय लेती है, क्योंकि प्रत्येक ग्रह की अपनी गति है और पृथ्वी की भी अपनी गति है, इसीलिए घूर्णन पूरा करने की अवधि अलग है।

• सभी ग्रह जिस क्षेत्र में 360° घूम रहे हैं, उस क्षेत्र में भिन्न राशियांऔर नक्षत्र हैं।

• इस विषय को समझने के लिए मुख्य बात यह समझें, कि प्रत्येक ग्रह और पृथ्वी की अलग-अलग गति है और जब हम किसी ग्रह को पृथ्वी के सापेक्ष देखेंगे तो उसकी स्थिति इस 360° के क्षेत्र में अलग-अलग रहेगी ।

• उदाहरण बुध की गति और पृथ्वी की गति भिन्न है, और जब हम बुध को 360° के पूरे क्षेत्र में देखेंगे तो बुध हमें पृथ्वी के सामने की कक्षा मेंअलग दिखेंगे, परंतु बुध जैसे ही पृथ्वी सेअलग कक्षाओ ंमेंजाएं गे, उनकी स्थिति भिन्न लगेगी ।

• इस सिद्धांत को हम इस प्रकार समझे जब हम किसी ट्रेन में बैठे हो और और हमारी ट्रेन एक निश्चित रफ्तार से चल रही हो और उसी समय बगल से एक ट्रेन आपकी ट्रेन सेअधिक गति से उसी दिशा मेंजा रही हो जिस दिशा में आपकी ट्रेन जा रही है, यदि हम इस स्थिति को कु छ समय तक देखेंतो लगता हैकि दोनों ट्रेन विपरीत दिशा मेंजा रहेहैं, परंतु ऐसा वास्तविकता में बिल्कुल नहीं होता ।

• इसको एक और उदाहरण से समझेतो ट्रेन से उतरकर जब हम बाहर जा रहे होते हैंऔर ट्रेन भी उसी दिशा मेंजा रही होती है, यदि इस स्थिति को हम ट्रेन से देखे हैं, क्योंकि यात्री और ट्रेन की गति भिन्न है इसीलिए ट्रेन से ऐसा प्रतीत होता है कि यात्री पीछे जा रहे हैं परंतु यह सत्य नहीं है, वास्तविकता में दोनों ही एक ही दिशा मेंजा रहे होते हैं, परंतु ऐसा प्रतीत होता है कि यात्री पीछे जा रहे हैं।

• इसी प्रकार जब कोई ग्रह पृथ्वी से अलग-अलग कक्षाओ ंमें जाता है तो क्योंकि ग्रह की गति भिन्न है इसीलिए ग्रह पृथ्वी से पीछे जाता हुआ प्रतीत होता है और साथ ही ग्रह पृथ्वी के समीप से पीछे जाता हुआ भी प्रतीत होता है, इसी सिद्धांत को वकृत्व का सिद्धांत कहते हैं, तथा इसी प्रकार कु छ समय पश्चात कक्षाओ ंके परिवर्तन से ग्रह हमें मार्गी अर्थात सीधा चलता हुआ भी प्रतीत होता है।

• अतः पृथ्वी की तुलना में ग्रह की गति जितनी अधिक होगी ग्रह हमें उतना ही अधिक बार वक्री होता प्रतीत होता है

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लेखक – मुकेश यादव

वक्री ग्रह का ज्योतिष में महत्व

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