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दान का अर्थ महत्व प्रकार

दान का अर्थ महत्व प्रकार

दान अर्थात देने की प्रक्रिया। जब व्यक्ति अपनी इच्छा से या किसी मन्नत के चलते कुछ भी चीज किसी जरुरतमंद को देता है उस एदां कहते हैं। हमारे सनातन धर्म में इसका बहुत महत्व है। ऐसा माना जाता है जो व्यक्ति दान धर्म को अपना महत्वपूर्ण धर्म समझता है उसे पुण्य प्राप्त होता है और मृत्यु के  पश्चात् उसे मोक्ष मिलता है। दान देना सिर्फ पैसा देना ही नही होता है दान कई तरह से दिया जा सकता है। दान का अर्थ है किसी भी चीज पर स्वयं का अधिकार छोडकर किसी और को दे देना। जब कोई चीज दान कर दी जाती है तो उस पर दान देने वाले का कोई अधिकार नही होता है। साथ ही दान इस भावना से देनी चाहिए कि आपको उस दान के बदले अपने लिए कुछ नही चाहिए। शास्त्रों में भी दान के कई प्रकार बताए गए हैं जिसके बारे में हम आपको बताने वाले हैं।

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दान का महत्व

दान देना धर्म का एक महत्वपूर्ण हस्सा है। शास्त्रों अनुसार जो व्यक्ति दान करता है वो जीवन की कई परेशानियों से अपने आप को बचा लेता है। दान देने से व्यक्ति की आयु ही नही बदती बल्कि सेहत भी अच्छी बनी रहती है। जीवन की हर परशानी से छुटकारा पाने का महत्वपूर्ण साधन है दान करना। दाना करने से व्यक्ति को बुरे ग्रहों के प्रभाव से मुक्ति मिल जाती है। ज्योतिष शास्त्रः में भी दान धर्म करने के अनेको लाभ के बारे में वर्णित हैं। दान निस्वार्थ भावना से देना चाहिए वरना आपके द्वार किए जाने वाले दान व्यर्थ जाएगे।

 वर्तमान में भी लोग दान देने के महत्व को समझते हैं लेकिन फिर वो समय न होने के  कारण और सीमित साधन होने के कारण कम किया जा है। दान धर्म को पुण्य कर्म माना जाता है। वैदिक काल से भारतीय संस्कृति का अटूट हिस्सा रहा है।

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दान के प्रकार

सनातन धर्म में मुख्य रूप से 5 तरह के दानो को महादान माना जाता है, जैसे भूमि दान, विद्या दाना, अन्न दान, गौ दान और कन्या दान। जब ये दान सच्चे मन से बिना किसी लालच के किया जाता है तब ये दान फलीभूत होते हैं।

गीता की वो पंकितयां सभी  को आज भी प्रेरित करती है, की कर्म करो फल की इच्छा मत करो अर्थात व्यक्ति के बस में कर्म करना है लेकिन उसका फल देना ईश्वर के हाथो में है। जैसा की सभी  जानते हैं कि हम जो भी काम करते हैं उसकी प्रतिक्रिया अवश्य होती है। इसलिए जो भी करे अपने सामर्थ्य अनुसार और श्रद्धापूर्वक करे। सृष्टि का ये नियम है कि व्यक्ति को अपने कर्मो का फल आज नेहे तो कल जरुर मिलता है।

सनातन धर्म अनुसार पांच महादान कौन से हैं 

  • भूमि दान

दान देने की परंपरा सालो पहले से चली आ रही है। पुराने ज़माने में राजा महाराजा अपने लोक परलोक सुधारने के लिए मंदिर को या किसी ब्राह्मण को भूमि दान देते थे। आज भी धनवान व्यक्ति को भूमि दान करना चाहिए जैसे अनाथ आश्रम,वृद्धाश्रम,गाँव में विद्यालय खोलने के लिए, गौशाला आदि खोलने के लिए भूमि दान करना श्रेष्ठ माना जाता है।

  • गौदान

अगर आप किसी भी ब्राह्मण से पूछेगे कि सर्वश्रेष्ठ दान कौन सा है तो आपको उत्तर मिलेगा गौ दान सबसे श्रेष्ठ दान होता है। ऐसा माना जाता है गौ माता का दान करके व्यक्ति अपने इस लोक के साथ साथ परलोक को भी सुधार सकता है। गौ दान करने से सिर्फ उसे या उसके परिवार को ही पुण्य नही मिलता साथ ही उसके पूर्वजो को भी जीवन चक्र से हमेशा के लिए मुक्ति मिल जाती है। 

  • अन्न दान 

भूखे को खाना खिलाना बहुत पुण्य का काम होता है। हिन्दू धर्म में हर उत्सव और हर त्यौहार के दिन गरीबो को भोजन कराने का विशेष महत्व है। किसी भूखे को खाना खिलाने से व्यक्ति के मन और आत्मा को शांति मिलती है और ढेर सारा पुण्य भी मिलता है।

  • कन्या दान

ये वो दान है जिसे महादान कहा गया है। कन्या दान व्यक्ति तब करता है जब वो अपनी बेटी  का विवाह करता है। उस वक्त माता पिता अपने जीवन का सबसे बढ़ा दान करते हैं। वो पाणिग्रहण संस्कार में अपनी पुत्री का हाथ वर के हाथ में देते हुए उससे ये वादा लेते हैं कि वो हमेशा उनकी कन्या का साथ देगा और उसकी सुरक्षा करेगा।

  • विद्या दान

विद्या दान भी एक महादान है। जो व्यक्ति किसी को विद्या दान देता है वो सिर्फ दान लेने वाले को उस वक्त ही लाभ नही देता बल्कि उसके जीवन को बना देता है। विद्या दान से व्यक्ति समाज में अपने लिए एक जगह बना पाता है। हिन्दू धर्म में गुरु को सर्वोपरि माना गया है। यदि व्यक्ति के आगे भगवान् और गुरु खड़े होंगे तो पहले गुरु के चरण छूने चाहिए क्योकि गुरु का स्थान सबसे ऊपर होता है।

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