जन्म कुंडली में कुल 12 भाव में अलग अलग ग्रह विराजमान होते हैं। जन्म कुंडली के अलग-अलग भाव में बैठे ग्रह जातक को अलग-अलग फल प्रदान करते हैं। लेकिन जन्म कुंडली में ग्रहों द्वारा मिलने वाले फलों का विचार करने के लिए ज्योतिष शास्त्र में बताए गये बहुत सारे सिद्धांतों का ध्यान रखना आवश्यक होता है जिससे हम ग्रहों की सही स्थिति व उनसे प्राप्त होने वाले सही फल का अनुमान लगा सकें।
आज के लेख में हम जानने वाले हैं कि जन्म कुंडली के किसी भी भाव में बैठे ग्रह का फल जानने के लिए ज्योतिष के किन बातों को ध्यान रखना सर्वाधिक आवश्यक है?
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ग्रहों का फल जानने के लिए प्रमुख ज्योतिषीय सूत्र-
जन्म कुंडली में ग्रहों के फल का विचार करते समय वैसे तो बहुत सारी बातों का ध्यान रखता पड़ता है लेकिन उनमें से कुछ बहुत महत्वपूर्ण नियमों के विषय में आज बात करने वाले हैं। ये प्रमुख नियम निम्नलिखित हैं-
- जन्म कुंडली में ग्रहों के फल पर विचार करते समय सबसे पहले इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि ग्रह कुंडली की किस राशि में बैठा हुआ है?
राशि का ध्यान रखने से ही हम ग्रह के सम्पूर्ण प्रभाव को जान सकते हैं। मान लीजिए कि लग्न भाव में मेष राशि हो और उसमें चंद्रमा विराज मान हो तो ऐसा जातक अपने जीवन में जो कुछ हासिल करता है उसी में संतुष्ट रहने का प्रयास करता है। ऐसा जातक को पानी से बहुत डर लगता है। इसके अलावा वह घूमने फिरने के शौकीन होता है।
- ग्रहों के फल का विचर करते समय दूसरी महत्वपूर्ण बात ध्यान रखी जाती है कि जिस ग्रह के फल का विचार किया जा रहा है, वो जन्म कुंडली के किस भाव में बैठा हुआ है?
ग्रह के भाव का विचार करना इसलिए आवश्यक होता है क्योंकि जन्म कुंडली के हर एक भाव का अलग महत्व व फल होता है। इसके बारे में हम विस्तार से पिछले लेखों में जान चुके हैं। जिसमें धन भाव, पराक्रम भाव, लग्न भाव, आयु भाव, ऋण भाव, भाग्य भाव आदि भाव प्रमुख रूप से शामिल हैं। इन भावों के आधार पर इस बात का सम्पूर्ण विश्लेषण हो पाता है कि कौन सा ग्रह जातक को किस तरह का फल देने वाला है?
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- ग्रहों के फल का विचार करते समय तीसरी महत्वपूर्ण बात यह ध्यान रखी जाती है कि जिस ग्रह के फल पर विचार किया जा रहा है, वह ग्रह जन्म कुंडली के किस भाव का स्वामी ग्रह है?
अपने पिछले लेखों मे हम इस बात को विस्तार से समझ चुके हैं कि हर एक भाव का एक स्वामी ग्रह होता है। स्वामी ग्रह के अनुसार ही जातक को फल प्राप्त होता है। उदाहरण के लिए जन्म कुंडली के पहले भाव का स्वामी मंगल होता है, दूसरे भाव का शुक्र व तीसरे भाव का बुध। इसी तरह से जन्म कुंडली के सभी 12 भावों के अलग अलग स्वामी ग्रह होते हैं।
- ग्रहों के फल का विचार करते समय इस बात के भी विशेष ध्यान रखा जाता है कि वह ग्रह जन्म कुंडली में किस ग्रह के साथ बैठा हुआ है? संक्षेप में कहें तो ग्रहों की युति का भी फल पर प्रभाव पड़ता है।
दो अलग अलग ग्रह अलग अलग चीजों के कारक ग्रह होते हैं इसलिए जब जन्म कुंडली में ग्रहों की युति होती है तो दोनों ग्रहों पर समान रूप से विचार करना पड़ता है।
- अंत में एक और महत्वपूर्ण बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि जिस ग्रह पर विचार किया जा रहा है, उस ग्रह पर किन अन्य ग्रहों की दृष्टि पड़ रही है? ग्रहों की दृष्टि को ज्योतिष में अत्यंत महत्वपूर्ण बताया गया है।
निष्कर्ष-
इस प्रकार से हमने जन्मकुंडली में ग्रहों के फल का विचार करते समय ध्यान रखे जाने वाले नियमों का विस्तार से विश्लेषण किया।
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