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जन्मकुंडली के इस भाव में गुरु देते हैं सर्वश्रेष्ठ फल!

जन्मकुंडली के इस भाव में गुरु देते हैं सर्वश्रेष्ठ फल!

ज्योतिष में गुरु को सबसे शुभ ग्रहों में से एक माना जाता है । जिस जातक की जन्म कुंडली में गुरु अच्छी स्थिति में हों उसके पास  विद्या , बुद्धि व विवेक की कोई कमी नहीं रहती । जन्म कुंडली का अध्ययन करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि कौन सा ग्रह नीच राशि में है और कौन सा ग्रह उच्च राशि में है क्योंकि शुभ ग्रह अगर नीच राशि में होगा तो पूर्ण रूप से शुभ फल नहीं देगा और अगर अशुभ ग्रह अगर उच्च राशि में है तो जातक के लिए कम नुकसानदेह सिद्ध होगा । इसलिए जन्म कुंडली में ग्रहों की स्थिति देखते समय इन दोनों बातों का ध्यान रखना बेहद आवश्यक है । 

आज हम जन्म कुंडली में शुभ ग्रह गुरु की स्थिति का विश्लेषण करने जा रहे हैं । इसमें हम जानेंगे कि जन्म कुंडली के कौन से भाव में गुरु कैसा फल देते हैं । साथ ही यह भी समझेंगे कि उच्च राशि में बैठे गुरु का फल नीच राशि में बैठे गुरु के फल से कितना अलग होता है ।

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जन्म कुंडली के छह भावों में देव गुरु जातक को सर्वश्रेष्ठ फल प्रदान करते हैं । यह छह भाव निम्नलिखित हैं –

  1. प्रथम भाव 
  2. द्वितीय भाव 
  3. तृतीय भाव 
  4. षष्ठ भाव 
  5. अष्टम भाव 
  6. द्वादश भाव 

अब हम क्रम से जन्म कुंडली के इन छह भावों गुरु के फलों का विस्तार से विवेचन करेंगे । 

जन्मकुंडली के प्रथम भाव में गुरु -

जन्म कुंडली के प्रथम भाव को लग्न भाव भी कहा जाता है । कुंडली के लग्न भाव में बैठे गुरु जातक को सदैव शुभ फल  प्रदान करते हैं । जातक को भूमि, भवन व वाहन सुख प्राप्त होता है । 

जन्मकुंडली के द्वितीय भाव में गुरु -

जन्म कुंडली के दूसरे भाव में देव गुरु को कारक ग्रह कहा जाता है । जन्म कुंडली के द्वितीय भाव में गुरु जातक को धन वैभव से समृद्ध करते हैं और बेहद श्रेष्ठ फल प्रदान करते हैं । साथ ही जातक को स्त्री सुख की भी प्राप्ति होती है ।

जन्मकुंडली के तृतीय भाव में गुरु-

जन्म कुंडली के तृतीय भाव में बैठे गुरु जातक के पराक्रम व पौरुष में वृद्धि करते हैं । अपने पौरुष से जातक कार्यक्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है । साथ ही अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने में सफल होता है ।

जन्मकुंडली के छठे भाव में गुरु -

जन्म कुंडली के षष्ठ भाव में गुरु के प्रभाव को दो चरणों में देखा जाता है -पहला प्रारम्भिक चरण व दूसरा अंतिम चरण । जन्म कुंडली के छठे भाव में बैठे गुरु जातक को प्रारम्भिक समय में शुभ फल प्रदान करते हैं और बाद के समय में स्वास्थ्य संबंधी कुछ समस्याएं खड़ी करते हैं । स्वास्थ्य में मुख्य रूप से उदर संबंधी विकार देखने को मिल सकता है ।

जन्मकुंडली के अष्टम भाव में गुरु-

जन्म कुंडली के अष्टम भाव में गुरु जातक को समस्त भौतिक सुख प्रदान करते हैं हालांकि जातक स्वास्थ्य संबंधी कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है । इसके साथ ही गुरु के प्रभाव से जातक अध्यात्म की ओर उन्मुख होता है ।

जन्मकुंडली के द्वादश भाव में गुरु -

जन्म कुंडली के द्वादश भाव में बैठे गुरु का फल प्रथम दृष्ट्या अच्छा नहीं माना जाता है किन्तु अंत तक ये जातक का आध्यात्मिक विकास करते हुए शुभ फल प्रदान करते हैं । भौतिक सुखों की दृष्टि से द्वादश भाव का फल बहुत अच्छा नहीं कहा जा सकता है ।

निष्कर्ष -

इस प्रकार से हमने जन्म कुंडली के उन छह भावों के विषय में जाना, जिनमें गुरु देव जातक को सर्वश्रेष्ठ फल प्रदान करते हैं । 

जन्मकुंडली के इस भाव में गुरु देते हैं सर्वश्रेष्ठ फल!
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