ज्योतिष आस्था और विश्वास से जुड़ा हुआ विज्ञान है । इसके माध्यम से कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में घटने वाली शुभ या अशुभ घटनाओं के विषय में जानकारी ले सकता है व अशुभ घटनाओं से बचने का समुचित रास्ता भी निकाल सकता है। यह भविष्य की परिस्थितियों के अध्ययन का विज्ञान है । व्यक्ति के जीवन पर ग्रहों का विशेष प्रभाव होता है इसलिए हमें ग्रहों की शक्ति व उनके प्रभावों को जानने समझने की आवश्यकता होती है ।
ग्रहों की शक्ति व कमजोरी का पता लगाने के लिए वैदिक ज्योतिष में षडबल का सहारा लिया जाता है । षडबल के द्वारा हम प्रत्येक ग्रह की 6 शक्तियों के बारे में जान सकते हैं । ये 6 बल निम्नलिखित हैं –
1. स्थानबल –
जन्मकुंडली में जो ग्रह उच्च स्थान पर हो ,स्वराशि में हो या मित्र राशि में बैठा हो उसे स्थान बल हासिल होता है । शुक्र या चंद्रमा जब जलतत्त्वीय या भूमितत्त्वीय राशि में बैठे हों तब वो स्थानबली होते हैं । सूर्य ,मंगल ,गुरु और शनि जब अग्नि और वायु तत्त्वीय राशि में बैठे हो तब इन्हें स्थान बल हासिल होता है । जल तत्त्व की राशि होती हैं – कर्क राशि , वृश्चिक राशि और मीन राशि तो वहीं भूमि तत्त्व की राशि है – वृषभ राशि , कन्या राशि व मकर राशि । इन 6 राशियों में शुक्र या चंद्रमा के होने से स्थान बल प्राप्त होता है । मेष राशि,सिंह राशि और धनु राशि ये तीनों अग्नि तत्त्व की राशि मानी जाती हैं तो वहीं मिथुन राशि , तुला राशि और कुम्भ राशि वायु तत्त्व की राशि होती हैं । इन 6 राशियों में सूर्य , मंगल ,गुरु और शनि बैठे हों तो इन्हें स्थान बल प्राप्त होता है ।
2. दिग्बल –
दिग का शाब्दिक अर्थ दिशा होता है अर्थात जो ग्रह उचित दिशा में होता है वो दिग्बल प्राप्त करता है । जन्मकुंडली के प्रथम भाव यानि पूर्व दिशा में गुरु और बुध बैठे हों तो दिग्बल प्राप्त हो जाता है । कुंडली के दशम भाव यानि दक्षिण दिशा में जब सूर्य और मंगल बैठते हैं तब दिग्बल हासिल होता है । कुंडली के सप्तम स्थान यानि पश्चिम दिशा में जब शनि बैठते हैं तो दिग्बल प्राप्त करते हैं । जन्मकुंडली के चतुर्थ भाव यानि उत्तर दिशा में शुक्र और चंद्रमा जब बैठते हैं तो दिग्बल प्राप्त करते हैं।
3. कालबल –
काल का शाब्दिक अर्थ होता है समय यानि इस बल का सीधा संबंध जन्म के समय से है । जिन लोगों का जन्म समय रात्रि का होता है उनकी कुंडली में चंद्र ,शनि व मंगल का ज्यादा प्रभाव होता है वहीं जो लोग दिन में जन्म लेते है उनकी कुंडली में सूर्य ,गुरु व शुक्र बलवान होते हैं । बुध दिन और रात दोनों मे समान रूप से बलवान होते हैं।
यह भी पढ़ें:-2022 में शादी करने के लिए ये हैं सबसे शुभ तिथियां
4. चेष्टा बल –
जन्मकुंडली में मकर ,कुम्भ ,मीन , मेष , वृष व मिथुन इन राशियों में सूर्य और चंद्रमा एक साथ हों तो इन्हें चेष्टा बल प्राप्त होता है यानि ग्रहों को गतिमान करने वाला बल चेष्टा बल कहलाता है ।
5. नैसर्गिक बल –
सूर्य ,चंद्र, शुक्र , गुरु ,बुध ,मंगल ,शनि ये ग्रह नैसर्गिक रूप से बलवान होते हैं अर्थात कुंडली में सूर्य नैसर्गिक रूप से सबसे बलवान ग्रह है । नैसर्गिक बल में चंद्रमा दक्षिणायन में अधिक बलवान होता है तो वहीं सूर्य उत्तरायन में अधिक बलवान होता है ।
6. दृग्बल –
दृग् का अर्थ देखने से है यानि जब एक ग्रह की दृष्टि दूसरे ग्रह पर पड़ती है तब उनके आपसी संबंधों के अनुसार शक्ति घटती या बढ़ती है । दो मित्र ग्रहों की दृष्टि पड़ने पर शक्ति बढ़ती है तो वहीं इसके उलट दो शत्रु ग्रहों की दृष्टि मिलने से शक्ति कम हो जाती है ।
अंत में संक्षेप में कहा जा सकता है कि अगर आपकी जन्मकुंडली में किसी ग्रह को सभी के सभी 6 बल प्राप्त हो जाएँ तो वो ग्रह आपकी कुंडली में सर्वाधिक बली हो जाएगा और आपके जीवन को चमत्कारिक रूप से प्रभावित करेगा ।
हमारी वेबसाईट एस्ट्रोलोक के माध्यम से ज्योतिष विज्ञान का विस्तार से अध्ययन करें व विश्व प्रसिद्ध ज्योतिषी श्री आलोक खंडेलवाल द्वारा अपना भविष्यफल और राशिफल जानें ।
यह भी पढ़ें:- खरमास – जानें इस माह में क्या करें क्या ना करें!